देखु सखि! सावन मास बहार।
नवल निकुंज-मंजु बिच झूलत, नवल युगल सरकार।
पकरे दोउ, इक-इक कर डोरिन, इक-इक कर गर डार।
दोउ देँ झोँटे झूमि-झूमि झुकि, एकहिं एक निहार।
फहरत नील पीत पट अंचल, चंचल लट घुँघरार।
गावत राग मलार दुहुँन मिलि, अलि कर स्वर-विस्तार।
सखिन बजावति बीन वेनु कोउ, सब प्रवीन इक-सार।
लखि ‘कृपालु’ कह ‘दोउ मम ठाकुर, जय हो जय बलिहार’॥
नवल निकुंज-मंजु बिच झूलत, नवल युगल सरकार।
पकरे दोउ, इक-इक कर डोरिन, इक-इक कर गर डार।
दोउ देँ झोँटे झूमि-झूमि झुकि, एकहिं एक निहार।
फहरत नील पीत पट अंचल, चंचल लट घुँघरार।
गावत राग मलार दुहुँन मिलि, अलि कर स्वर-विस्तार।
सखिन बजावति बीन वेनु कोउ, सब प्रवीन इक-सार।
लखि ‘कृपालु’ कह ‘दोउ मम ठाकुर, जय हो जय बलिहार’॥
No comments:
Post a Comment